लॉक डाउन और 1947 के बाद देश में सबसे बड़ा पलायन |
1947 के बाद सबसे बड़ा पलायन
Last Updated On: 15 August 2023
1947 देश विभाजन से लेकर 2020 आजतक भारत ने काफी परिपक्वता प्राप्त की लेकिन आज जब तालाबंदी के 50 दिन बीत गए है देश की स्तिथि देश विभाजन के समय से भी बदतर है |
ऐसा हम क्यों कह रहे है जब देश का विभाजन हुआ उस समय की बात करे तो भारत में एक नई व्यवस्था का जन्म हो रहा था | अंग्रेज भारत छोड़कर जा रहे थे | उनके जाने के साथ की सारी वयवस्था भी अस्त-व्यस्त हो चुकी थी | न तो जिलो में जिलाधिकारी थे न ही पुलिस |
भारत एक नई दिशा में चलना शुरू ही कर रहा था | लाखो लोग दंगो की भेट चढ़ गए थे इन सब के बीच भी लाखो लोगो को राहत शिविर में पनाह मिली | जगह - जगह भोजन वितरण की व्यवस्था की गए |
आज आजादी के 70 साल बीत जाने के बाद जब सरकारे बड़े-बड़े दावे करती है तो आज के समय वो दावे जुमले मात्र ही लगते है |
कहते है भारत की आत्मा गाँव, गरीब किसान और मजदूरों में बस्ती है वो गरीब मजदूर जो अपने पसीने से देश का भाग्य लिखता है आज उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है |
अगर सरकरी आकड़ो की बात करे तो राज्य सरकारों के अपने-अपने तर्क है | उत्तर प्रदेश में अभी तक 15 लाख मजदूर सरकारी आकड़ो में प्रदेश वापस आये है और पैदल, साइकिल व अन्य साधनों से वापस आने वालो का तो कोई आकड़ा ही नहीं है |
सैकड़ो लोगो अपने घरो की हजारो किलोमीटर की दुरी पैदल ही जाने को मजबूर है न पैरो में चप्पल न पेट मे दाना | बिस्कुट और पानी पीकर ही लोग गुजारा कर रहे है | ऐसा लगता है अब बिस्कुट ही राष्ट्रीय भोजन बन गया है |
आज राज्यों की सीमायें इन मजदूरों के लिए बॉर्डर बन गयी है प्रदेश की सीमा पर पुलिस की लाठियां उनके बदन पर पड़ रही है | जिसके कारण लाखो लोगो को रेल की पटरी ही घर जाने का रास्ता बनी हुई है |
रेल पटरी पर चलने के कारण कई मजदूरों की जान भी चली गयी | महाराष्ट्र में हुए हादसे में 16 मजदूर मालगाड़ी से काटकर मर गये | महाराष्ट्र हो या गुजरात दिल्ली हो या उत्तर प्रदेश आये दिन ये गरीब हादसों का सिकार हो रहे है |
जो मजदूर कर तक अमीरों की जागीर थे और सरकारों के चुनावी एजेंडा थे आज उनको न ही पेट भर भोजन प्राप्त है और न ही सरकारी मदत |
घर वापसी के लिए मजबूर ये गरीब अपने घर जाने के लिए किस तरह की यातनाये सह रहे है कई लोगो ने पाच-पाच हजार रूपए कर्ज लेकर ट्रको और ऑटो चालको को देने पड़े |
तालाबंदी होने के बाद लाखो लोगो की नौकरिया चली गए आज अगर हम सडको पर देखे तो ऐसा लगता है जैसे फल और सब्जी बेचने वालो की बाढ़ आ गयी है चारो तरफ अफरातफरी का माहोल है हर कोई अपने आने वाले कल को लेकर परेशान है |
माँ अपने बच्चे को लेकर सेकड़ो किलोमीटर पैदल चलने को मजबूर है | पैदल चलते-चलते कई मजदूर भूख, प्यास और थकान से अपनी जान गया चुके है |
अब तो भगवान से बस यही प्राथना है जो सिसयासतदार चुनावों के समय बड़े-बड़े दावे करते है वो इन गरीबो की कुछ शुध ले |