सिन्धु घाटी सभ्यता को भारत की अतीत की पहली तस्वीर माना जाता है, जिनके अवशेष सिन्धु में मोहनजोदड़ो और पश्चिमी पंजाब में हडप्पा में मिले है | यह सभ्यता विशेष रूप से उत्तर भारत में दूर तक फैली थी | यह एक नगरीय सभ्यत्ता का उदारण है |
सिन्धु घाटी सभ्यता नगर व्ययस्था
Last Updated On: 19 September 2023
सिन्धु घाटी सभ्यता भारत के प्राचीन सभ्यताओं में से एक है, और इसे हरप्पा सभ्यता भी कहा जाता है, क्योंकि इसकी प्रमुख स्थल हरप्पा (जो अब पाकिस्तान के सिंध प्रांत में है) में पाई गई थी. यह सभ्यता करीब 2600 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व तक विकसित हुई थी |
सिन्धु घाटी सभ्यता का सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन बहुत अद्वितीय था। इस सभ्यता के निवासियों के पास बड़े समृद्धि के साथ निर्मित घर, सड़कें, नहरे, और सामरिक सामग्री होती थी। इस सभ्यता के लोग बाजारों में व्यापार करते थे और उनकी लिपि का प्रमुख रूप से इस्तेमाल होता था, जिसे हरप्पा लिपि कहा जाता है।
सिन्धु घाटी सभ्यता के महत्वपूर्ण स्थलों में से कुछ हैं:
हरप्पा: यह सभ्यता का प्रमुख स्थल था, और इसकी खुदाई से बहुत सारी महत्वपूर्ण जानकारी मिली है। हरप्पा के अवशेष इस सभ्यता की जीवनशैली, वस्तुओं की निर्माण तकनीक, और सामाजिक संरचना के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं।
मोहनजोदड़ो: यह भी एक महत्वपूर्ण सिन्धु घाटी सभ्यता का स्थल था और इसकी खुदाई से भी महत्वपूर्ण जानकारी मिली है।
लोथल: लोथल एक प्रमुख नगर था और यह बंदरगाह के रूप में उपयोग किया जाता था। यहां से समुंदर में जाने वाले कारवां और व्यापार के साक्षरात्मक अवशेष मिले हैं।
सिन्धु घाटी सभ्यता की भाषा, धर्म, और कई पहचानें अज्ञात हैं, इसलिए हम इसके बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए अध्ययन और खोज जारी रख रहे हैं|
सिन्धु घटी सभ्यता में सर जॉन मार्शल का योगदान
सर जॉन हुबर्ट मार्शल (Sir John Hubert Marshall) एक प्रमुख ब्रिटिश आर्कियोलॉजिस्ट थे, जिन्होंने सिन्धु घाटी सभ्यता के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान किया। वे ब्रिटिश संगठन "इंडियन आर्कियोलॉजिकल सर्वे" के उपाध्यक्ष रहे हैं, और उन्होंने सिन्धु घाटी सभ्यता के खुदाई काम की नेतृत्व किया।
सर जॉन मार्शल के योगदान कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों का पता लगाने में मददगार रहे:
मोहनजोदड़ो की खुदाई: उन्होंने मोहनजोदड़ो (Mohenjo-Daro) की खुदाई का आयोजन किया, जो सिन्धु घाटी सभ्यता का महत्वपूर्ण स्थल था। उन्होंने इस स्थल पर विस्तारित खुदाई कार्य किया और सभ्यता के निवासीओं के जीवन, संरचना, और जीवनशैली के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की।
हरप्पा और मोहनजोदड़ो के सिप्टोन की खोज: सर जॉन मार्शल ने हरप्पा और मोहनजोदड़ो के सिप्टोन (Seals) की खोज की, जिनमें हरप्पा लिपि का प्रयोग किया गया था। इन सिप्टोन से उन्होंने सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि को पढ़ा जा सकने का प्रमाण प्रस्तुत किया।
सिन्धु घाटी सभ्यता के निर्माण और सांस्कृतिक खगोलशास्त्र के प्राप्त ज्ञान का अध्ययन: मार्शल ने सिन्धु घाटी सभ्यता की सांस्कृतिक और सामाजिक विशेषताओं का अध्ययन किया और इसके संरचनात्मक पहलुओं को समझने का प्रयास किया।
सर जॉन मार्शल के काम का परिणामस्वरूप, हमारे पास सिन्धु घाटी सभ्यता के बारे में महत्वपूर्ण ज्ञान है, और उन्होंने इस प्राचीन सभ्यता के इतिहास और संस्कृति की समझ में महत्वपूर्ण योगदान किया।
सिन्धु घाटी सभ्यता में रायबहादुर दयाराम साहनी का योगदान
रायबहादुर साहनी (Rai Bahadur Daya Ram Sahni) भारतीय पुरातात्वविद थे, और उन्होंने सिन्धु घाटी सभ्यता के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान किया। उन्होंने 20वीं सदी के प्रारंभ में सिन्धु घाटी सभ्यता के महत्वपूर्ण खुदाई कामों का नेतृत्व किया और कई महत्वपूर्ण खोदाई मोहनजोदड़ो (Mohenjo-Daro) में किये।
रायबहादुर साहनी के योगदान के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं का उल्लिखन किया जा सकता है:
मोहनजोदड़ो की खुदाई: उन्होंने मोहनजोदड़ो की खुदाई का नेतृत्व किया, जो सिन्धु घाटी सभ्यता के महत्वपूर्ण स्थलों में से एक था। उन्होंने मोहनजोदड़ो के अवशेषों को पहचानने और अध्ययन करने के लिए महत्वपूर्ण योगदान किया और सिन्धु घाटी सभ्यता के अध्ययन में आधार स्थापित किया।
खुदाई सिप्टोन की खोज: रायबहादुर साहनी ने सिन्धु घाटी सभ्यता के सिप्टोन (Seals) की खोज की और उन्होंने इन सिप्टोनों के महत्वपूर्ण खगोलशास्त्रीय और सांस्कृतिक संकेतों का अध्ययन किया।
सिन्धु घाटी सभ्यता की जीवनशैली का अध्ययन: उन्होंने सिन्धु घाटी सभ्यता के निवासियों की जीवनशैली, सामाजिक संरचना, और व्यवस्था के बारे में अध्ययन किया और इसके समझ में महत्वपूर्ण योगदान किया।
रायबहादुर साहनी का योगदान सिन्धु घाटी सभ्यता के अध्ययन में महत्वपूर्ण था, और उन्होंने इस प्राचीन सभ्यता के इतिहास और संस्कृति की समझ में मदद की। उनके खोदाई काम ने हमें सिन्धु घाटी सभ्यता की धारा, व्यवस्था, और तकनीकी ज्ञान के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की।
मोहन जोदड़ो का शाब्दिक आर्थ क्या है
मोहनजोदड़ो (Mohenjo-Daro) एक प्राचीन स्थल है जो सिन्धु घाटी सभ्यता का हिस्सा था और आजकल पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित है। "मोहनजोदड़ो" एक सिंधी शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है "मुरजा का तिला" या "मृतक की हिल"।
यह नाम इस स्थल के प्राचीन खगोलशास्त्रीय समय के बाद से ही प्रचलित हुआ है, और इसका उपयोग मोहनजोदड़ो के महत्वपूर्ण खुदाई क्षेत्र को पुनर्निर्माण करने के लिए किया जाता है।
सिन्धु घाटी सभ्यता की नगरीय प्रणाली की क्या खूबिय थी
सिन्धु घाटी सभ्यता की नगरीय प्रणाली में कई महत्वपूर्ण खूबियाँ थीं, जो इसे एक प्राचीन और प्रगतिशील सभ्यता बनाती थीं। इनमें से कुछ मुख्य खूबियाँ निम्नलिखित हैं |
सड़कें और संचालन पद्धति: सिन्धु घाटी सभ्यता की नगरीय प्रणाली में व्यापारिक और सामाजिक गतिविधियों के लिए सड़कें तैयार की गई थीं। इन सड़कों की डिज़ाइन और संचालन पद्धति बहुत अद्वितीय थी, जिसमें ड्रेनेज सिस्टम और गलियों के निम्न स्तर के पट्टिका शामिल थे।
सड़क किनारे के घर: सिन्धु घाटी सभ्यता के घर सड़कों के किनारे बनाए गए थे, जिनमें अधिकांश घर द्वितीय तल पर बने होते थे। ये घर बक्सा रंगीन ईंटों से निर्मित थे और उनमें आवश्यक सुविधाएं जैसे कि जलसंचार, शौचालय, और रसोईघर शामिल थे।
जलसंचार सिस्टम: सिन्धु घाटी सभ्यता में जलसंचार का प्रबंधन किया गया था। नगरों में जल की व्यवस्था थी और घरों को सिर पर ऊपरी तल पर रखकर जल का संचयन किया जाता था।
संघटनक सदस्यता: सिन्धु घाटी सभ्यता के नगरों में विभिन्न प्रकार के सभ्य और व्यापारिक संघटन थे, जो व्यापार और सामाजिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करते थे।
भाषा और लिपि: इस सभ्यता में एक अद्वितीय लिपि, जिसे "हरप्पा लिपि" भी कहते हैं, का प्रयोग किया जाता था। इसका प्रयोग सीलों पर किया जाता था, और यह नगरीय प्रणाली के लिए महत्वपूर्ण था।
ग्रामीण और नगरीय स्थल: सिन्धु घाटी सभ्यता में ग्रामीण और नगरीय स्थलों का समावेश था। नगरीय स्थलों में व्यापार, शिक्षा, और सांस्कृतिक गतिविधियां होती थीं, जबकि ग्रामीण स्थलों में कृषि और वनस्पति के प्रबंधन के लिए जलसंचार प्रणालियाँ मौजूद थीं।
सिन्धु घाटी सभ्यता की नगरीय प्रणाली एक विकसित और सुविधाजनक समाज की प्रतिष्ठा थी और इसकी नगरीय संरचना, जलसंचार प्रणाली, और सांस्कृतिक गतिविधियों का अद्वितीय विकास उसकी महत्वपूर्ण विशेषताओं में से कुछ हैं।
सिन्धु घटी सभ्यता के लोगो की धार्मिक अवस्था कैसी थी और वो किन देवी देवताओ की पूजा करते थे
सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों की धार्मिक अवस्था के बारे में निर्धारित जानकारी कम है, क्योंकि उनकी धार्मिक प्रथाओं और अनुष्ठानों का पूरा और स्पष्ट चित्रण नहीं किया जा सकता है। हालांकि, कुछ धार्मिक प्रतीक और चिह्न खुदाई के दौरान मिले हैं, जिनके माध्यम से हम कुछ धार्मिक अनुमान लगा सकते हैं।
पशुपतिनाथ शिव: सिन्धु घाटी सभ्यता के एक महत्वपूर्ण प्रतीक में से एक शिव की छवि है, जिसे पशुपतिनाथ भी कहते हैं। इस प्रतीक में एक पुरुष जिसका एक हाथ में त्रिशूल है, वह बैठा हुआ है और उसके चारों ओर कुछ पशुओं की तस्वीरें होती हैं। यह सुझाव देता है कि शिव की पूजा इस सभ्यता में महत्वपूर्ण थी।
योनि और लिंग प्रतीक: खुदाई के दौरान योनि (फेमिनाइन प्रतीक) और लिंग (मैस्कुलिन प्रतीक) की प्रतियाँ मिली हैं, जिनका धार्मिक महत्व हो सकता है। यह सुझाव देता है कि शक्ति और प्रजनन के प्रति ध्यान दिया जा सकता था।
यज्ञ और अल्तार: सिन्धु घाटी सभ्यता के खुदाई क्षेत्रों में कुछ यज्ञशाला और अल्तार के स्पष्ट अवशेष मिले हैं, जो यज्ञ और धार्मिक अनुष्ठानों के संदर्भ में सुझाव देते हैं।
यह सभी प्रतीक और चिह्न दिखाते हैं कि सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों की धार्मिक अवस्था में शिव, शक्ति, और प्रजनन के महत्वपूर्ण मूर्तियों का पूजन किया जा सकता था। हालांकि, हम इस धर्म के विवरण और विशेषता को स्पष्टतः नहीं जानते हैं क्योंकि इस सभ्यता का लेखित रूप में कोई धार्मिक ग्रंथ नहीं मिला है।
सिन्धु घटी सभ्यता में महिलाओ की सिथिति कैसी थी
सिन्धु घाटी सभ्यता में महिलाओं की स्थिति के बारे में निर्धारित जानकारी कम है, क्योंकि इस सभ्यता के बारे में हमारे पास बहुत कम लिखित या प्रमुख स्रोत हैं। हालांकि, कुछ चीजें उनकी सोशल और आर्थिक स्थिति के बारे में सुझाव देती हैं:
सिन्धु घाटी सभ्यता के सीलों में महिलाओं की प्रतीकों का प्रदर्शन: सिन्धु घाटी सभ्यता की सीलों में कुछ प्रतीक हैं जो महिलाओं को प्रतिष्ठा दिलाते हैं, जैसे कि महिलाएं गहनों का प्रयोग करती हुई और उनकी वेश्या दिक्षा के प्रतीक। यह सुझाव देता है कि महिलाएं समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती थीं.
गाँव और शहरी स्थलों की समाज में भिन्न भिन्न भूमिकाएं: सिन्धु घाटी सभ्यता में गाँवों और नगरों के बीच भिन्न भिन्न समाजिक और आर्थिक संरचनाएं थीं। महिलाएं ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि और घरेलू काम में शामिल हो सकती थीं, जबकि नगरों में व्यापार और विभिन्न व्यवसायों में भाग ले सकती थीं।
सीलों में दिखाए जाने वाले पुरुष-महिला संबंध: कुछ सीलों में पुरुष और महिला संबंधों का प्रदर्शन किया गया है, जिससे सुझाव मिलता है कि समाज में विवाह और परिवार का महत्व था।
पुरुष और महिलाओं के एकसाथ दिखाए जाने वाले चित्र: कुछ चित्रों में पुरुष और महिलाएं एक साथ दिखाए गए हैं, जो सुझाव देता है कि उनके सामाजिक और आर्थिक जीवन में एक साथ होने की प्रक्रिया हो सकती थी।
कृपया ध्यान दें कि यह सभी सुझाव हैं और इस सभ्यता के लोगों की वास्तविक जीवनस्थिति को समझने में हमारे पास उपयुक्त खुदाई और प्रमुख स्रोत नहीं हैं। महिलाओं की स्थिति उनके सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक संदर्भों पर निर्भर कर सकती है, और यह विभिन्न समय और स्थानों पर भिन्न भिन्न हो सकती है।
सिन्धु घटी सभ्यता में प्राप्त स्नानागर का वर्णन करे
सिन्धु घाटी सभ्यता में प्राप्त स्नानगर या नहाने के स्थलों का विवरण कुछ खुदाई और अन्य खोजों से प्राप्त होता है। ये स्थल व्यक्तिगत स्वच्छता और शुद्धता के लिए महत्वपूर्ण थे और सामाजिक और आध्यात्मिक गतिविधियों का हिस्सा भी थे।
बठिंदा नहरों का उपयोग: खुदाई के दौरान, सिन्धु घाटी सभ्यता के नगरों में विभिन्न नहरों के खुदाई स्थल पाए गए हैं, जिन्हें स्नानगर के रूप में चिह्नित किया गया है। इन नहरों का उपयोग स्नान और सामाजिक आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए किया जा सकता था।
स्नान के कुआं और वावों के विवरण: खुदाई से स्नान के कुआं और वावों (बावड़ी) के अवशेष मिले हैं। इनके माध्यम से लोग नहाने जा सकते थे, और इन स्थलों को शुद्धता और स्वच्छता के लिए महत्वपूर्ण माना जा सकता है।
जलसंचालन प्रणाली: नहरों के साथ ही, सिन्धु घाटी सभ्यता में जलसंचालन प्रणाली का भी उल्लेख है, जिससे जल की व्यवस्था की जाती थी। यह स्नानगरों में जल के स्रोत को प्रबंधित करने में मदद कर सकता था।
गाँवों और नगरों के साथियों की सांख्या: खुदाई से प्राप्त डेटा दिखाता है कि स्नानगरों की सांख्या गाँवों और नगरों में भिन्न थी, जिससे सुझाव मिलता है कि ये स्थल जनसंख्या के हिस्से थे और लोगों के दैनिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा थे।
यह स्नानगर सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों के दैनिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा थे और यहाँ स्नान, स्वच्छता, और धार्मिक अद्यतनता के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए भी उपयोग हो सकते थे।
मोहन्जोदारो में प्राप्त स्नानागार का वर्णन करे
मोहनजोदड़ो, सिन्धु घाटी सभ्यता के महत्वपूर्ण नगरों में से एक था और इसका स्नानागार या नहाने का स्थल भी प्राप्त हुआ है। मोहनजोदड़ो में प्राप्त स्नानागार का विवरण निम्नलिखित है:
बठिंडा (Bath): मोहनजोदड़ो में पाए गए स्नानागारों के एक अधिकांश को "बठिंडा" कहा गया है। बठिंडा की भौगोलिक स्थान को नहाने के लिए बनाया गया था। यह जगह स्नान के लिए महिलाएं और पुरुष दोनों के लिए उपलब्ध थी।
पुल्लिया (Drainage System): बठिंडा के निकट एक पुल्लिया (ड्रेनेज सिस्टम) भी मिला है, जिसका काम नहाने के पानी को निकालने का था।
प्रत्येक घर के पास स्नानगार: मोहनजोदड़ो के घरों के आस-पास बठिंडों के छोटे स्नानगार थे, जिन्हें प्रत्येक घर के लिए डिज़ाइन किया गया था। यह सुझाव देता है कि लोग नियमित रूप से स्नान करते थे और स्वच्छता के महत्व को समझते थे।
सीवरेज सिस्टम: मोहनजोदड़ो में सीवरेज सिस्टम के अवशेष भी मिले हैं, जिनका उपयोग निष्क्रिय स्नान पानी को बहाने के लिए किया जाता था।
ड्रेनेज नेटवर्क: मोहनजोदड़ो में सड़कों के पास और स्नानगारों के नीचे बने ड्रेनेज नेटवर्क के अवशेष मिले हैं, जो नहाने के पानी को वहां से बहाते थे।
इन विवरणों से सुझाव मिलता है कि मोहनजोदड़ो में स्नान और स्वच्छता का महत्व था और यह सभ्यता के लोगों के दैनिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा था।
मोहन्जोदारो में प्राप्त महा स्नानागार का आयतन कितना था |
मोहनजोदड़ो के महा स्नानागार का आयतन लगभग 12,000 वर्ग मीटर (यानी लगभग 1.2 हेक्टेयर) था। यह स्नानागार बड़े और समृद्ध था और यहां पर लोग नहाने आते थे, जो स्वच्छता की दृष्टि से महत्वपूर्ण था। इसके आयतन के आधार पर, यह स्नानागार मोहनजोदड़ो के निवासियों के दैनिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा था और समुदाय की सामाजिक और आध्यात्मिक गतिविधियों का भी एक हिस्सा हो सकता है।
मोहन्जोदारो से प्राप्त महास्नानगार सैन्धव सभ्यता की सबसे महत्वपूर्ण इमारत है | इस स्नानागार के मध्य में स्थित स्नानकुंड 11.88 मीटर लम्बा, 7.01 मीटर चौड़ा एवं 2.43 मीटर गहरा है |